गेहूं की पत्ती छूने से हाथ पीला हो, तो समझो पीला रतुआ रोग - डॉ. दीपिका सूद
गेहूं प्रदेश की मुख्य फसल है। इस समय कई स्थानों पर पीला रतुआ रोग का प्रकोप इस फसल में दिखाई दे रहा है। इस रोग में फफूंदी के फफोले पत्तियों पर पड़ जाते हैं जो बाद में बिखर कर अन्य पत्तियों को ग्रसित कर देते हैं। पत्तों का पीला होना ही पीला रतुआ नहीं है, पीला पत्ता होने के कारण फसल में पोषक तत्वों की कमी, जमीन में नमक की मात्रा ज्यादा होना और पानी का ठहराव भी हो सकता है।



पीला रतुआ बीमारी में गेहूं के पत्तों पर पीले रंग का पाउडर बनता है। इसे छूने पर हाथ पीला हो जाता हैं। हिमाचल के निचले और गर्म क्षेत्रों में यह रोग अधिक पाया जाता है। फरवरी माह में गेहूं की फसल में लगने वाले पीला रतुआ रोग आने की संभावना रहती है। 

ये हैं लक्षण
फरवरी माह में गेहूं की फसल में पीला रतुआ (यलोरस्ट) रोग लगने की संभावना रहती है। तापमान में वृद्धि के साथ-साथ गेहूं में यह रोग बढ़ जाता है। हाथ से छूने पर धारियों से फंफूद के पीले रंग के बीजाणु हाथ में लगते हैं। फसल के इस रोग की चपेट में आने से कोई पैदावार नहीं होती है और किसानों को फसल से हाथ धोना पड़ता है। इस बीमारी के लक्षण प्राय ठंडे और नमी वाले क्षेत्रों में ज्यादा देखने को मिलते हैं।

 

साथ ही पोपलर और सफेदे के आसपास उगाई गई फसलों में यह बीमारी सबसे पहले आती है। पहली अवस्था में यह रोग खेत में 10-15 पौधों पर एक गोल दायरे में शुरू होकर बाद में पूरे खेत में फैल जाता है। तापमान बढ़ने पर पीली धारियां पत्तियों की निचली सतह पर काले रंग में बदल जाती है। रोग के लक्षण दिखाई दें तो उसका निदान रासायनिक अथवा जैविक किसी भी उपचार से किया जा सकता है। 

डॉ. दीपिका सूद प्रदेश कृषि विवि में सेवाएं दे रही हैं। डॉ. दीपिका के पास खुंब उत्पादन पर 20 से अधिक वर्ष का अनुभव है। इसके अलावा मई से अगस्त 2019 तक जापान में उन्होंने शीत के खुंब पर प्रशिक्षण हासिल किया है।